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Showing posts from September, 2017

मंझन की नायिका मधुमालती का रूप-सौन्दर्य

मंझन की नायिका मधुमालतीका रूप-सौन्दर्य शाहिद इलियास सूफ़ियों के अनुसार, यह सारा जगत् एक ऐसे रहस्यमय प्रेमसूत्र में बँधा है जिसका अवलंबन करके जीव उस प्रेममूर्ति तक पहुँचने का मार्ग पा सकता है। सूफ़ी सब रूपों में उसकी छिपी ज्योति देखकर मुग्ध होते हैं , ' प्रेम-रस बून्दन ' के दीवाने हो जाते हैं। मधुमालती के विराट्, व्यापक और अनुपम रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए मंझन कहते हैं ౼ देखत ही पहिचानेउ तोहीं। एही रूप जेहि छँदरयो मोही एही रूप बुत अहै छपाना। एही रूप रब सृष्टि समाना एही रूप सकती औ सीऊ। एही रूप त्रिभुवन कर जीऊ एही रूप प्रगटे बहु भेसा। एही रूप जग रंक नरेसा उपर्युक्त पंक्तियों में मंझन ने समासोक्ति पद्धति में ईश्वर की ओर संकेत किया है और मधुमालती के रूप-सौन्दर्य  के बहाने समस्त सौन्दर्य के शाश्वत स्रोत परम प्रीतम ईश्वर के अनुपम रूप-सौन्दर्य का सरस, सम्मोहक और जीवन्त चित्रण किया है। सुन्दर वस्तु शाश्वत और आनन्ददायिनी होती है। इन पंक्तियों में प्रकृति में व्याप्त ईश्वर के व्यापक रूप-सौन्दर्य की ओर संकेत किया है। मतलब यह कि जायसी ने जिस पारसरूप की कल्पना की है, मं...

अमीर ख़ुसरो के काव्य की मूल संवेदना

अमीर ख़ुसरो के काव्य की मूल संवेदना शाहिद इलियास भूमिका किसी युग का प्रतिनिधि साहित्यकार बैरोमीटर की तरह अपने समय के परिवर्तन दर्ज करता है। ख़ुसरो ऐसे ही साहित्यकार हैं , जिनकी रचनाओं में उनके युग का स्पंदन साफ़ सुनार्इ देता है। उन्होंने फ़ारसी और हिंदुस्तानी ज़बान में विपुल साहित्य रचा है । हिंदुस्तानी ज़बान में रचे उनके साहित्य का मनमोहक रंग खड़ी बोली का है। ख़ुसरो में संस्कृतियों का मिलन है। अभिजात और जन-संस्कृति का जैसा संगम ख़ुसरो की कविता में है , वैसा अन्यत्र कम ही मिलता है। उनकी कविता को समझना लोक-मन को समझना है। ख़ुसरो के जीवन की विविधता अनेकरूपा है। वे दरबार से भी जुड़े हैं और जन से भी। उन्हें पाँच-पाँच सल्तनतों के दरबारों के अनुभव मिले। मिश्र भाषा में जीना उनका स्वभाव रहा। काव्य-रूपों का भी ख़ुसरो ने विविधतामय प्रयोग किया है। उनके द्वारा प्रयुक्त प्रमुख काव्य-रूप हैं : गीत (बाबुल गीत , झूला गीत , सावन गीत , बसंत गीत), पहेलियाँ (बूझ पहेली , अनबूझ पहेली), कह मुकरियाँ, दो सुखना, अनमेलिया या ढकोसला , निसबत , ग़ज़ल , दोहा और फुटकर पद्य। ख़ुसरो की खड़ी बोली में रचित...

खड़ीबोली का विकास

खड़ीबोली का विकास शाहिद इलियास परिचय शब्दार्थ की दृष्टि से खड़ी बोली हिन्दी का अर्थ हिन्द का होते हुए भी इसका प्रयोग उत्तर भारत के मध्य में बोली जानेवाली भाषा के लिए होता है। खड़ी बोली हिन्दी भारत की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। व्यवहार में यह उस भूभाग की भाषा मानी जाती है. जिसकी सीमा पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर-पशिचम में अम्बाला, उत्तर में शिमला से लेकर नेपाल के पूर्वी छोर तक के पहाड़ी प्रदेश, पूर्व में भागलपुर, दक्षिण-पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण-पशिचम में खंडवा तक पहुंचती है। इस विशाल भूभाग के निवासियों के साहित्य, पत्र-पत्रिका, शिक्षा-दीक्षा, आपस में वार्तालाप इत्यादि की भाषा खड़ी बोली हिन्दी है, जिसे स्थानीय बोलियों की छाया मिली रहती है। शिष्ट बोलचाल के अतिरिक्त स्कूलों-विद्यालयों में शिक्षा-दीक्षा की भाषा एकमात्र खड़ी बोली है। यह भाषा खड़ी बोली हिन्दी है। विभिन्न नाम   खड़ी बोली अनेक नामों से अभिहित की गई है यथा ౼ हिंदुई , हिंदवी , दक्खिनी , दखनी या दकनी , रेखता , हिंदोस्तानी , हिंदुस्तानी आदि। डॉ॰ ग्रियर्सन ने इसे वर्नाक्युलर हिंदुस्तानी तथा डॉ॰ सु...